तबले को अपनी गोद में रखने वाले, फर्श पर अखबार बिछाकर सोने वाले एक महान तबला वादक Zakir Hussain का निधन अत्यंत दुखदाई है। जानते हैं आज कुछ उनके बारे में, कैसा था उनके जीवन का सफर और क्या थी उनकी मंज़िल।
मार्च का महीना, साल 1951, 9 तारिख को महाराष्ट्र के मुंबई में जन्म हुआ था, एक महान तबला वादक ज़ाकिर हुसैन जी का। उनका पूरा नाम ज़ाकिर अल्लाहरखा कुरैशी था। उंहोने अपना हाईस्कूल महिम Mahim से किया उसके बाद ग्रेजुएशन की पढाई उन्होंने St. Xavier’s College, Mumbai. से पूरी की।
तीन साल की उम्र से हुई शुरुआत:
Zakir Hussain जी ने पहली बार तबला 3 साल की उम्र में छुआ था, उनको तबला बजाने का हुनर अपने पिता से विरासत में मिला था। तबला वादन से जुड़ा विश्व समुदाय, पूरी दुनिया उनकी आभारी रहेगी। इस देश में आने वाली कई-कई पीढ़ियां उनकी आभारी रहेंगी। तबले की कला को सशक्त और समृद्ध करने के लिए वो निरंतर समर्पित रहे, उन्होंने अपने जीवन का हर लम्हा तबले को सौंप रखा था। भले ही कुछ लोग ये मानते हों की तबले का अविष्कार 18वीं शताब्दी में 1738 के आसपास अमीर खुसरो ने किया था, लेकिन इस तथ्य को ज़ाकिर जी आधा सत्य कहते हैं।
जब उन्होंने संस्कृत सीखी :
11 साल की उम्र में तबला वादन की पहली सार्वजानिक प्रस्तुति करने वाले Zakir जी जैसे-जैसे परिपक्व होते गए वैसे-वैसे उनकी इस कला में निखार ही नहीं आया बल्कि उन्होंने इस वाद्ययंत्र की प्राचीनता की पड़ताल में भी लम्बा समय बिताया। ज़ाकिर जी भले ही इस्लाम को मानने वाले थे, लेकिन तबले की जड़ तक जाने के लिए उन्होंने संस्कृत भी सीखी थी। उन्होंने बताया था की जब जब उन्होंने संस्कृत ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया तो यह जानकार हैरान रह गए थे की कई हजार वर्षों से तबला अस्तित्व में है और वह इस बात से सहमत भी थे। उनका तर्क ये था की अगर तबला 18वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया होता तो सनातनी देवी देवताओं के नाम पर परन का निर्माण नहीं हुआ होता। गणेश परन, सरस्वती परन, शिव परन………. ये सभी परन संस्कृत ग्रंथों में किये गए उल्लेख को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं।
कैसे हुआ रुझान ज़ाकिर हुसैन का तबला की ओर :
बचपन में जब उन्हें कोई सपाट जगह मिलती तो वो उँगलियों से हरकत करने लगते थे। यहाँ तक की कभी रसोई घर में खाली पड़े बर्तनों को भी बजाने लगते थे, जिसके लिए उन्हें कई बार अपनी अम्मी से मार भी खानी पड़ी। पर एक नन्हा बच्चा क्या ही करता वो खुद को रोक ही नहीं पाते थे, पर उनकी इस यात्रा की शुरुआत तब हुई जब एक बार यही हरकत करते हुए उन्हें उनके पिता अल्लाहरखा साहब ने गौर किया तब उन्हें इस कला को सिखाने में अपना सर्वस्व लगा दिया। ज़ाकिर जी ने तबला वादन को पूरी शिद्दत के साथ पूरी तरह अपने जीवन में उतार लिया था। यह उसी का असर था की मात्र 10 साल की उम्र में उन्होंने कठिन से कठिन बोलों को चौगुन-अठगुन में बजाना सीख लिया था।
उन 5 रुपयों की कीमत :
वो महज़ 11 साल के थे जब उन्होंने अपने पिता के साथ सार्वजानिक मंच पर प्रस्तुति दी थी। ये कार्यक्रम भी मुंबई में ही हुआ था। उस कार्यक्रम में पं. रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पं सामता प्रसाद और पं किशन महाराज जैसे दिग्गज कलाकार उनके सामने थे। उन सबके सामने उन्होंने अपने पिता के साथ तबला बजाया था। उनका तबला वादन सुन रहे दिग्गज कलाकारों में से एक ने उन्हें इनाम के तौर पर 5 रुपये दिए थे। ज़ाकिर जी के किये वोह 5 रुपये अत्यंत मूलयवान थे। उस 5 रुपये के इनाम ने उनके अंदर ऐसा उत्साह भर दिया की उन्होंने अपनी हर सांस तबला वादन के नाम कर दी। भविष्य में तबला वादन के लिए उन्हें बड़ी बड़ी रकम मिलने लगी। लेकिन उन 5 रुपयों की कीमत उनके लिए सबसे अधिक थी।
फिल्मों में भी किया काम :
अपनी इस कला को मशहूर करने के बाद उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने 1983 की एक ब्रिटिश फिल्म हीट एंड डस्ट से डेब्यू किया था। इस फिल्म में शशि कपूर ने भी काम किया था। इस फिल्म में उनके अपोजिट शबाना आजमी थी। ज़ाकिर हुसैन ने इस फिल्म में शबाना के प्रेमी का किरदार निभाया था। उसके बाद उन्हें फिल्म मुग़ल-ए-आजम में सलीम के छोटे भाई का रोल देने की भी पेशकश हुई थी। लेकिन उनके पिता को यह मंजूर नहीं था, वोह चाहते थे की उनका बेटा सिर्फ संगीत पर ही ध्यान दे।
Zakir Hussain Awards: ज़ाकिर हुसैन जी के प्रमुख सम्मान:
इतनी मेहनत, लगन और तपस्या के बाद उनकी कला के लिए मिलने वाले पुरस्कार इस बात का जीता जागता सबूत हैं की वो अपनी इस कला में कितने निपुण थे। एक नजर उनके कुछ प्रमुख पुरस्कारों की ओर।
1988 | पद्मश्री |
1990 | संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
1992 | प्लेनेट ड्रम एल्बम के लिए बेस्ट वर्ल्ड म्यूजिक का ग्रैमी |
2002 | पद्मभूषण |
2006 | मध्यप्रदेश सरकार की ओर से कालिदास सम्मान |
2009 | कन्टेम्परेरी वर्ल्ड म्यूजिक एल्बम का ग्रैमी |
2012 | कोणार्क नाट्य मंडप से गुरु गंगाधर प्रधान लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड |
2019 | संगीत नाट्य अकादमी की तरफ से अकादमी रत्न पुरस्कार |
2023 | पद्मविभूषण |
2024 | तीन अलग अलग एल्बम के लिए तीन ग्रैमी मिले |
Zakir Hussain Albums : कुछ प्रसिद्ध एल्बम भी बनाये
Zakir Hussain जी के कुछ एल्बम बहुत प्रसिद्ध हैं आइये एक नजर उन पे भी :
1977 | फेस टू फेस |
1987 | मेकिंग म्यूजिक |
1991 | प्लेनेट ड्रम |
1993 | साउंडस्केप्स |
1994 | उस्ताद अमज़द अली खान एंड ज़ाकिर हुसैन |
1985 | रेमेम्बेरिंग शक्ति |
1998 | साज |
2002 | द ट्री ऑफ़ रिदम |
2007 | ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट |
2023 | एज वी स्पीफ |
एक किस्सा यह भी:
जावेद अख्तर जी ने अपने प्रिय ज़ाकिर हुसैन को याद करते हुए एक किस्सा बताया की जब जाकिर साहब को पद्म विभूषण देने की घोषणा हुई, तो उन्होंने ये पुरस्कार लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा की मेरे गुरु समान किसान महाराज जी को अब तक यह सम्मान नहीं मिला है तो मैं कैसे ले सकता हूँ। अंततः किशन महाराज जी को पद्म विभूषण मिलने के बाद पिछले साल ( 2023 ) में Zakir Hussain जी को भी ये सम्मान मिल ही गया।
प्रेरणा :
दुनिया भर में तबला वादन को मशहूर करने वाले शास्त्रीय तबला वादक उस्ताद Zakir Hussain ने सोमवार को अपने जीवन के 73वें वर्ष में संसार को अलविदा कह दिया। लेकिन वो अमर कर गए अपने इरादों को। वो सिखा कर गए हमें गुरु का सम्मान करना, पिता के आदर्शों का पालन करना। इरादों के पक्के , मेहनती और बेहद नम्र शख्सियत के तौर पर वो इतनी उचाईयों के घमंड को भी उन्होंने सिर नहीं चढ़ने दिया। कहते है न , शुरुआत अगर जमीन से हो तो आसमां पर होने के बाद भी पांव जमीं पर ही रहते हैं ।
तो अब मिलते हैं फिर से किसी बेहतरीन पोस्ट में, पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏
KEEP SMILING, KEEP SHARING, KEEP SUPPORTING 🙏
Bhaiii Ye sarswati mata ji ki puja bhi krte the or ganpati ji ki bhi wow man he’s great 🙏
Thanks for reading man. Keep supporting
Nice
RIP MAN
May god rest his soul
1. Zakir Hussain globalized the tabla’s brilliance.
2. His fusion music bridged cultures beautifully.
🙏🙏🙏
Thanks boss for your precious support